सालों पहले अजय देवगन की फिल्म 'सन ऑफ सरदार' ने दर्शकों को अपने देसी हास्य, एक्शन और रंगीन पंजाबी अंदाज से खूब गुदगुदाया था। अब उसका सीक्वल ‘सन ऑफ सरदार 2’ रिलीज हो चुका है। इस बार भी वही देसी टच है, लेकिन थोड़ी और गहराई के साथ – रिश्तों की पेचीदगियां, आज की फैमिली डाइनैमिक्स और इमोशनल टोन को भी जोड़ा गया है।सीक्वल होने के कारण उम्मीदें ज़्यादा होती हैं, और ज़िम्मेदारी भी। तो क्या ये फिल्म पहली जैसी हंसी लेकर आई है? या फिर इमोशन के चक्कर में मजा किरकिरा हो गया है? आइए विस्तार से समझते हैं।
कहानी क्या कहती है?
जस्सी (अजय देवगन) यूके पहुंचता है अपनी पत्नी डिंपल (नीरू बाजवा) के साथ रिश्ते सुधारने। मगर वहां उसे झटका लगता है – डिंपल अब तलाक चाहती है। इसी बीच जस्सी की मुलाकात होती है राबिया (मृणाल ठाकुर) से, जो शादियों में डांस ग्रुप चलाती है।
राबिया की दोस्त की बेटी एक पंजाबी परिवार में शादी करना चाहती है, लेकिन दिक्कत यह है कि उसका होने वाला ससुर राजा संधू (रवि किशन) सिर्फ "संस्कारी भारतीय बहू" चाहता है। पाकिस्तानी मूल की राबिया इस पैमाने पर फिट नहीं बैठती। तब जस्सी खुद को राबिया का नकली इंडियन आर्मी फौजी बाप बनाकर इस झूठ को निभाने निकल पड़ता है।
यहां से शुरू होती है हंसी-मजाक, झूठ-सच, रिश्तों और इमोशन से भरी एक जर्नी — जिसमें कॉमेडी भी है, कनफ्यूजन भी और कहीं-कहीं थोड़ा दिल भी छूने वाला मोमेंट।
एक्टिंग कैसी है?
अजय देवगन जस्सी के रोल में सहज और भरोसेमंद नजर आते हैं। उनका कॉमिक टाइमिंग और इमोशनल टच दोनों अच्छा बैठता है।
मृणाल ठाकुर अपने पहले कॉमेडी रोल में फ्रेश लगती हैं। अजय के साथ उनकी केमिस्ट्री जमी है।
दीपक डोबरियाल ट्रांसजेंडर 'गुल' के किरदार में शानदार हैं – न सम्मान खोया, न कॉमेडी छोड़ी।
रवि किशन देसी डायलॉग्स और दबंग स्टाइल में छा जाते हैं।
संजय मिश्रा का कम स्क्रीन टाइम एक खलने वाला हिस्सा है।
बाकी कलाकार जैसे कुब्रा सैत, डॉली आहलूवालिया, विंदू दारा सिंह भी फिल्म के रंग में घुले हुए हैं।
निर्देशन और तकनीकी पहलू
विजय कुमार अरोड़ा का निर्देशन संतुलित है, लेकिन फिल्म की शुरुआत थोड़ी स्लो है। पहले 20 मिनट कहानी सेट करने में लगते हैं। जैसे-जैसे राबिया और राजा संधू की एंट्री होती है, फिल्म में रफ्तार और मजा दोनों बढ़ जाते हैं।
सेकेंड हाफ थोड़ा खिंचा हुआ लगता है। एडिटिंग अगर टाइट होती, तो फिल्म और क्रिस्प हो सकती थी। डायलॉग्स कहीं-कहीं शानदार हैं, लेकिन और मजेदार हो सकते थे। खासकर 'बॉर्डर' फिल्म के एक सीन को जिस तरह से कॉमिक अंदाज में दिखाया गया है – वह सीन वाकई हंसी का बम है।
म्यूजिक कैसा है?
गाने फिल्म के मूड और टोन से मेल खाते हैं। ‘पहला तू दूसरा तू’, ‘नजर बट्टू’, ‘नाचदी’ गानों की शूटिंग रंगीन है और कहानी से जुड़ी हुई लगती है। ये मूड ब्रेक नहीं करते, बल्कि सेट करते हैं।
देखना चाहिए या नहीं?
'सन ऑफ सरदार 2' एक क्लासिक कॉमेडी नहीं है, लेकिन इसमें दिल है। कुछ पल ऐसे हैं जो हंसाते हैं, कुछ रिश्तों की उलझन को छूते हैं और कुल मिलाकर ये एक साफ-सुथरी, पारिवारिक फिल्म है। अगर आप हल्का-फुल्का मनोरंजन चाहते हैं जिसमें मस्ती, इमोशन और देसी रंगत हो, तो यह फिल्म देखने लायक है।
रेटिंग: ⭐⭐⭐ (5 में से 3 स्टार) india4cinema.com की तरफ से, एक बार देख सकते हैं, बुरा नहीं लगेगा।
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