बॉलीवुड में जब भी देशभक्ति की बात होती है, तो अक्सर बंदूक, बॉर्डर और बलिदान वाले दृश्य सामने आते हैं। लेकिन ‘द डिप्लोमैट’ इन सबसे हटकर एक ऐसा दृष्टिकोण लाती है जहां देश के लिए लड़ी जाने वाली लड़ाई किसी युद्धभूमि में नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बातचीत की टेबल पर लड़ी जाती है। और इस बेहद गंभीर भूमिका में नजर आते हैं जॉन अब्राहम — जो इस बार न एक्शन हीरो हैं, न ही चिल्लाते हुए संवाद बोलते हैं, बल्कि एक शांत, संयमी और बुद्धिमान राजनयिक हैं।
कहानी क्या है ?
फिल्म की कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित है, जिसमें एक भारतीय नागरिक को विदेश में कानूनी और राजनीतिक उलझनों में फंसा दिया जाता है। भारत सरकार इस मुश्किल हालात से निपटने के लिए एक अनुभवी राजनयिक को ज़िम्मेदारी देती है — और यही बनता है फिल्म का केंद्र बिंदु।
जॉन अब्राहम का किरदार इस स्थिति को संभालने में अपने धैर्य, रणनीति और मानवीय दृष्टिकोण का सहारा लेता है। लेकिन मामला जितना दिखता है, उससे कहीं ज्यादा उलझा हुआ है। क्या वो देश के सम्मान और उस फंसे हुए व्यक्ति की जिंदगी — दोनों को बचा पाएंगे? यही जानने के लिए फिल्म आखिर तक बांधे रखती है।
एक्टिंग
इस बार जॉन अब्राहम ने अपने एक्शन हीरो वाले टेम्प्लेट से बाहर निकल कर एक ऐसा किरदार निभाया है जो पूरी तरह संयमित, शांत और अंदर से मजबूत है। उनका अभिनय ज़ोर से नहीं, गहराई से बोलता है। चेहरे के भाव, आंखों की भाषा और बॉडी लैंग्वेज से उन्होंने जो असर पैदा किया है, वह काबिल-ए-तारीफ है।
फिल्म में एक महिला डिप्लोमैट का किरदार भी है जो कहानी में एक भावनात्मक और पेशेवर संतुलन लाता है। हालांकि, स्क्रिप्ट में इस किरदार को और विस्तार दिया जा सकता था। लेकिन उस किरदार की उपस्थिति कहानी को संवेदनशील बनाती है।
डायरेक्शन और राइटिंग
शिवम नायर ने इस फिल्म का निर्देशन पूरी परिपक्वता के साथ किया है। वह इससे पहले Naam Shabana और Special Ops जैसे प्रोजेक्ट्स के लिए पहचाने जाते हैं, और यहां भी वो सस्पेंस और कूटनीति के मेल को बखूबी साधते हैं। फिल्म में अनावश्यक मेलोड्रामा नहीं है। यह एक ठोस, सोचने पर मजबूर करने वाली कहानी है, जो शांति और विवेक से अपने मकसद तक पहुंचती है।
हालांकि, फिल्म की रफ्तार कभी-कभी धीमी हो जाती है, और कुछ हिस्सों में स्क्रिप्ट को और कसाव की ज़रूरत महसूस होती है। फिर भी, फिल्म अपने विषय और टोन में ईमानदार बनी रहती है।
सादगी ही ताक़त है
सिनेमैटोग्राफी की बात करे तो लोकेशन्स रियल और विश्वसनीय लगते हैं। कैमरा वर्क फिल्म की टोन के अनुकूल है। न ज्यादा भड़कीला, न फीका।वही बैकग्राउंड म्यूज़िक साउंडट्रैक सीमित है, लेकिन जहां ज़रूरत है वहां असरदार है। साथ ही एडिटिंग की वजह से कुछ सीन्स थोड़े लंबे महसूस होते हैं, लेकिन कुल मिलाकर ट्रीटमेंट संतुलित है।
India4Cinema की राय
‘द डिप्लोमैट’ एक ऐसी फिल्म है जो चुपचाप लेकिन प्रभावी ढंग से अपने संदेश को पहुंचाती है। यह फिल्म हमें याद दिलाती है कि देशभक्ति सिर्फ मैदान-ए-जंग में नहीं, मेज के उस पार भी निभाई जाती है — जहां शब्द, समझ और संवेदना हथियार बनते हैं।
यह जॉन अब्राहम के करियर की एक नई दिशा हो सकती है, जिसमें वह गंभीर और सधा हुआ अभिनय करते नजर आते हैं। अगर आप मसालेदार नहीं, बल्कि अर्थपूर्ण और असल घटनाओं पर आधारित फिल्मों में रुचि रखते हैं — तो ‘द डिप्लोमैट’ ज़रूर देखें।
द डिप्लोमैट एक शांत, सधी हुई और प्रभावशाली राजनीतिक थ्रिलर है। ना चीख-पुकार, ना दिखावा — सिर्फ संवेदनशीलता, कूटनीति और अभिनय का संतुलन।
रेटिंग: ★★★ (3/5)
यह भी पढ़े:
Dabba Cartel Review: ऊंची दुकान फीके पकवान, अधपकी कहानी पर बनी थका देने वाली वेब सीरीज
Criminal Justice A Family Matter Review: फिर लौटे वकील माधव मिश्रा, देखिए Pankaj Tripathi की दमदार अदाकारी