Dhadak 2 Review in Hindi: बड़ी बातें कहने की कोशिश, लेकिन असर अधूरा रह गया


'धड़क 2' जाति, प्रेम और सामाजिक विद्रोह जैसे गहरे विषयों को छूने की महत्वाकांक्षी कोशिश करती है। सिद्धांत चतुर्वेदी की मजबूत परफॉर्मेंस के बावजूद फिल्म कहानी, निर्देशन और संगीत के स्तर पर असर छोड़ने में चूक जाती है। अगर आप सोशल ड्रामा के शौकीन हैं, तो यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है — लेकिन दिल को छू जाने वाली लव स्टोरी की तलाश करने वालों के लिए यह अनुभव अधूरा रह सकता है।

स्टोरी: जहां प्रेम और जाति की लड़ाई आपस में उलझ जाती है

‘धड़क 2’ एक ऐसी कहानी को पर्दे पर लाने की कोशिश करती है, जो भारत की सबसे जटिल सामाजिक सच्चाई—जातिगत भेदभाव—से टकराने का दावा करती है। फिल्म का नायक एक ऐसे समाज से आता है, जहां व्यक्ति की पहचान उसके नाम से नहीं, उसकी जाति से होती है। वहीं नायिका एक ऐसे कुल से आती है, जहां प्रेम से ज़्यादा खून की शुद्धता मायने रखती है।

शुरुआत में यह एक मासूम प्रेम कहानी लगती है, लेकिन धीरे-धीरे सामाजिक सच्चाइयों की परतें खुलने लगती हैं। इंटरवल के बाद फिल्म एक सामाजिक संदेश देने की कोशिश करती है, लेकिन इस बदलाव को प्रस्तुत करने का तरीका काफी असंतुलित और उलझा हुआ लगता है।

एक्टिंग: सिद्धांत प्रभावशाली, लेकिन बाकी हिस्से फीके

सिद्धांत चतुर्वेदी ने अपने किरदार में गहराई लाने की पूरी कोशिश की है। एक डरा-सहमा लड़का कैसे धीरे-धीरे अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ा होता है, यह उनकी आंखों, हाव-भाव और संवादों में झलकता है।

ट्रिप्ती डिमरी का किरदार कई परतों वाला है, लेकिन वह दर्शकों को पूरी तरह जुड़ने का मौका नहीं देता। उनकी और सिद्धांत की जोड़ी में वह केमिस्ट्री नहीं है जो प्रेम कहानी की आत्मा बनती। सहायक किरदारों का उपयोग भी सतही रहा — कुछ सीन अधूरे लगते हैं, जैसे उनमें कुछ और होना चाहिए था।

निर्देशन और तकनीकी पक्ष: सोच मजबूत, लेकिन निष्पादन बिखरा हुआ

निर्देशक ने एक संवेदनशील और प्रासंगिक विषय को छूने की कोशिश की, लेकिन यह तय नहीं कर पाए कि फिल्म को दिल से कहना है या दिमाग से। यही असमंजस फिल्म की गति, टोन और गहराई को प्रभावित करता है।

पहला हाफ बेहद धीमा और सतही है, जबकि दूसरा हाफ तेजी से मुद्दों पर आता है लेकिन उन्हें गहराई से पकड़ नहीं पाता। स्क्रिप्ट कई बार गंभीर सामाजिक विषयों को सिर्फ छूकर निकल जाती है। डायलॉग्स में कुछ जगह असर है, लेकिन कई बार वे जरूरत से ज्यादा मेलोड्रामैटिक हो जाते हैं।

कैमरावर्क और लोकेशंस अच्छी हैं लेकिन कहानी को नया आयाम नहीं दे पातीं। एडिटिंग थोड़ी टाइट होती तो फिल्म का असर और बेहतर हो सकता था।

संगीत: धड़क जैसा असर नहीं

‘धड़क’ नाम अपने साथ एक संगीत की विरासत लेकर आता है, लेकिन 'धड़क 2' इस मामले में पूरी तरह पिछड़ जाती है। गाने औसत हैं, कोई भी ट्रैक दिल में उतरता नहीं। बैकग्राउंड स्कोर कभी-कभी काम करता है, लेकिन कई बार यह दृश्य की भावनाओं से ज्यादा हावी हो जाता है।

फाइनल वर्डिक्ट: देखना है या नहीं?

अगर आप सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्मों में रुचि रखते हैं, या सिद्धांत चतुर्वेदी के अभिनय के प्रशंसक हैं, तो आप इसे एक बार देख सकते हैं।

लेकिन अगर आप 'धड़क' जैसी मासूमियत से भरी प्रेम कहानी की तलाश में हैं, तो यह फिल्म आपकी उम्मीदों से काफी दूर है।

india4cinema की ओर इस फिल्म को मिलते है 2.5/5 स्टार

Housefull 5 review in Hindi: एक नहीं दो-दो एंडिंग्स के साथ लौटी अक्षय कुमार की मस्ती

(फोटो साभार: Dhrama Productions)

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने